आधुनिकता के चकाचौंध के कारण इन दिनों मिट्टी के बर्तनों की ओर रूझान कम कुम्हार जाति के लोग कर रहें हैं पारंपरिक व्यवसाय से अलविदा

REPORT BY: Pratah Awaj IT Head Dheeraj kumar Thu, 16 Oct 2025 4:17 pm (IST)
कुम्हार जाति के लोग कर रहें हैं पारंपरिक व्यवसाय से अलविदा
इटखोरी: इस दीपावली के त्यौहारों का सीजन होते हुए भी मिट्टी के बर्तन बनाने के व्यवसाय से जुड़े कुम्हार समुदाय के लोगों का धंधा फीका पड़ा हुआ है। विदित हो कि प्राचीन काल से ही हमारे देश में परम्परा चली आ रही है कि अहोई-अष्टमी व दीपावली पर मिट्टी से बने चुगड़े, झाकरी, ठूठी, दीपक का इन पर्वो पर विशेष महत्व रहा है। आधुनिकता की चकाचौंध के कारण इन दिनों मिट्टी से बने बर्तनों की ओर रुझान कम होता जा रहा है। इस विशेष समुदाय के लिए रोजी रोटी को प्रभावित करने वाले कुम्हार समुदाय के अरविंद, रघुवीर, मनोज बबलू ने बताया कि आज मिट्टी के बर्तनों की ओर लोगों का रुझान कम होने की वजह से घर-घर में बनने वाले मिट्टी के बर्तन केवल नाम के ही रह गए हैं। पहले इन दिनों में हर कुम्हार के घर पर मिट्टी के बर्तनों के ढेर लगे रहते थे। पूरा परिवार बर्तन बनाने में, रंगाई करने में तथा उन्हें पकाने के कार्यों में व्यस्त रहता था। पिछले कई वर्षो से मिट्टी के बर्तनों की उपेक्षा होने के चलते अधिकतर कुम्हार समुदाय के लोगों ने इस पूस्तैनी धंधे से किनारा कर लिया है। कुछ लोग जो अब भी इस पैतृक व्यवसाय के साथ जुड़े हुए हैं, वह भी स्वयं बर्तन न बनाकर अन्य स्थानों से बर्तनों की खरीदारी कर लोगों को आपूर्ति करते हैं। कुम्हार समुदाय के इन लोगों ने बताया कि इस पैतृक व्यवसाय से किनारा करवाने में महंगाई का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। समुदाय के अधिकतर लोग अपनी तंग आर्थिक व्यवस्था के चलते बर्तन बनाने की प्रक्रिया में आने वाले खर्च को भी सहन नहीं कर पाते। ऊपर से रही सही कसर अहोई-अष्टमी आदि पर्वों पर मिट्टी के बतर्नों की जगह चीनी मिंट्टी से बने, स्टील से बने बर्तनों ने भी पुरी कर दी है। इसके चलते कुम्हार समुदाय के पास अपने पैतृक व्यवसाय को अलविदा कहने के सिवाय अन्य कोई भी विकल्प नहीं रहा है। मिट्टी के बर्तन कुम्हार परिवार रोमी , कल्याणपुर, इटखोरी मंडप आदी जगहों पर बनाते है ।
फ़ोटो : मिट्टी के बर्तन बनाते कुम्हार जाती