छत्तीसी तालाब जीर्णोद्धार कार्य: कहीं स्थानीयों के लिए जहर तो नही बन रहा अमृत योजना ?

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REPORT BY: Anal kant mishra Tue, 17 Jun 2025 1:01 am (IST)
सूचना पट्ट व पारदर्शिता का अभाव, गुणवत्ता पर सवाल देवघर (प्रातः आवाज़) अमृत भारत योजना के तहत देवघर नगर निगम क्षेत्र के छत्तीसी तालाब का जीर्णोद्धार कार्य स्थानीय लोगो की परेशानी बढ़ा दी है।बेहद धीमी गति से चल रहा है, जिससे स्थानीय नागरिकों में आक्रोश है। तालाब पर न तो योजना से संबंधित कोई सूचना पट्ट लगा है, और न ही कोई प्रतिनिधि वहाँ मौजूद रहता है जो कार्य की जानकारी दे सके। ऐसे में जीर्णोद्धार कार्य की प्रगति और गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं।स्थानीय निवासी ब्रह्मदेव राउत ने बताया कि तालाब से केवल गाद ही निकाली गई है, वह भी पूरी तरह नहीं। “गाद को तालाब के उत्तरी भाग में ही छोड़ दिया गया है,” ऐसा उन्होंने आरोप लगाया। वहीं मुकुल कुमार राउत ने तालाब के तल में ले जाकर दिखाया कि अभी भी तल में पैर ठेउना तक धंस रहा है। उनका कहना है कि जब कार्य की शिकायत की जाती है, तो जेई केवल भरोसा रखने की बात कहते हैं।रवि राउत ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “गाडवाल निर्माण में जो मसाला बनाया जा रहा है, उसका जो भी अनुपात अपनाया जा रहा है, वो तकनीकी रूप से गलत है।” साथ ही, उन्होंने निर्माण में "मृत पत्थरों" के उपयोग का आरोप लगाया। तालाब के लगभग 75% हिस्से में ही काम हुआ है, शेष भाग में गाद डाल दी गई है। स्थानीय निवासियों ने यह भी बताया कि पूर्व में तालाब में तीन इनलेट और एक आउटलेट था। इस बार निगम इन संरचनाओं को लेकर क्या योजना बना रही है, यह स्पष्ट नहीं है। वहीं, बच्चों ने शिकायत की कि गाद के कारण उनका खेल मैदान पूरी तरह से भर गया है।तालाब की तीनों ओर की मेड़ों पर डाली गई सामग्री को देख कर भी यह प्रतीत होता है कि गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। एक स्थानीय निवासी ने कटाक्ष करते हुए कहा, “क्या यही गुणवत्ता है जिसकी बात की जाती है?” जेई का जवाब – उलझन और असमर्थता का प्रदर्शन योजना के जेई सौरभ द्विवेदी से जब इन मुद्दों पर बात की गई तो उन्होंने अधिकांश प्रश्नों से किनारा करते हुए कहा कि “शिकायतें झूठी हैं।” उन्होंने बताया कि कार्य उनकी निगरानी में हो रहा है, लेकिन जब उनसे प्राक्कलन राशि, योजना के चरण और पारदर्शिता संबंधी बिंदुओं की जानकारी मांगी गई, तो उनका जवाब था कि "मेरे पास कोई जानकारी नहीं है, मेरे वरिष्ठ ही बता सकते हैं।" योजना के चरणों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि कार्य कई चरणों में किया जाना है जिसमें साफ-सफाई, गाद व मिट्टी की कटाई, गाडवाल निर्माण, फेंसिंग और वृक्षारोपण शामिल हैं। धड़ल्ले से चल रहा गार्डवाल निर्माण ,जेई को नही पता जब गाडवाल निर्माण की स्थिति पर चर्चा की गई तो उन्होंने यह कहकर चौंका दिया कि “मुझे पता नहीं कि गाडवाल निर्माण शुरू भी हुआ है। अब प्रश्न है गार्डवाल का निर्माण कार्य बिना किसी उचित निगरानी के कैसे शुरू कर दिया गया । हैरानी की बात यह है कि जूनियर इंजीनियर (जेई) को इसकी जानकारी तक नहीं है। यह स्थिति लापरवाही और कार्यों में पारदर्शिता की कमी को दर्शाती है। बिना अनुमति या निरीक्षण के चल रहे निर्माण से गुणवत्ता, सुरक्षा मानकों और बजट प्रबंधन पर सवाल उठते हैं। संभव है कि तालमेल की कमी हो। अधिकारी को तत्काल इसकी जांच करके कार्य की वैधता, डिजाइन और सामग्री की जाँच करनी चाहिए। यदि कार्य अनधिकृत है, तो उसे रोककर उत्तरदायी लोगों पर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो। वही मृत पत्थरों के इस्तेमाल पर उठ रहे सवाल पर उन्होंने सफाई दी कि “ऐसे पत्थरों का उपयोग उपयुक्त होता है।” अब सवाल यह उठता है... योजना की मॉनिटरिंग कितनी नियमितता से हो रही है? क्या कार्यस्थल पर सूचना पट्ट नहीं लगाना योजना निर्देशों का उल्लंघन नहीं है? क्या नागरिक सहभागिता और पारदर्शिता को जानबूझ कर दरकिनार किया जा रहा है? केंद्र सरकार द्वारा अमृत भारत योजना के तहत क्रियान्वयन में पारदर्शिता, सूचना पट्ट, चरणबद्ध रिपोर्टिंग, गुणवत्ता जांच और समय-सीमा में कार्य पूर्ण करना अनिवार्य किया गया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इन निर्देशों का अनुपालन कब और कैसे सुनिश्चित किया जाएगा। फिलहाल तो छत्तीसी तालाब का जीर्णोद्धार “भरोसे” के हवाले है।